प्रकृती का जवाब भाग -२
अंदर का नज़ारा देख समीर कुछ देर तक खड़ा रहा। सूरज ढल चुका था, और अंधेरा हो गया था। तो आखिरकार समीर ने हिम्मत करके साधु को आवाज दी। संदीप ने पुकारा तो साधु समाधि अवस्था से बाहर आया और समीर को देखा। जैसे ही उन्होंने देखा कि समीर बाहर ठंडी से कांप रहा था| उन्होंने उसे जवाब दिया और कुटिया में आने के लिए कहा। साधु की अनुमति से समीर कुटिया में आ गया। उसने कुटिया के अंदर देखा। कुटिया छोटी थी, लेकिन सुंदर थी। एक कोने में एक चुल्हा और उसके पास कुछ बर्तन थे। साधु के पास सोने के लिए एक छोटा सा बिस्तर था और कुटिया को गर्म रखने के लिए कुटिया के बीच में आग जलाई गई थी और साधु आग के पास कुछ दूरी पर अपने आसन पर बैठा था।
साधु ने समीर को आग के पास एक आसन प्रदान किया। ठंड से बाहर आते हुए, समीर को आग के साथ बेहतर महसूस हुआ। साधु ने समीर को पानी दिया और जब समीर थोड़ा शांत हुआ, तो उसने उससे उसका नाम और यहाँ आने का उद्देश्य पूछा। समीर ने साधु को अपना नाम बताया। और वो चंद्रशिला की ट्रेक करने आए है और कहा कि हम सड़क से चूक गए है। उसने साधु से आज रात तक यहां रहने का अनुरोध भी किया। साधु के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई और उन्होंने इसकी अनुमति दी।
साधु रात में कुछ नहीं खाते, यह महसूस करने के बाद समीर ने अपना भोजन कर लिया। भोजन के बाद, समीर वापस आग के पास साधु के सामने आ बैठा। थोड़ी देर बात करने के बाद, साधु ने उनसे पूछा, “आप पहले भी कई बार चंद्राशिला को आए है, लेकिन पहली बार ऐसा लगता है कि आप अपना रास्ता खो चुके हैं।” समीर हैरान था, ” आपको कैसे पता कि मैं पहले भी कई बार चंद्राशिला पर आ चुका हूँ और पहली बार रास्ता खो गया हूँ?” साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, “पहचानना बहुत मुश्किल नहीं है। आपके आने के बाद एक बार भीअपने साथी का जिक्र न करना मतलब, आप अकेले हैं। और इस अर्थ में कि आप अकेले चंद्राशिला पर जाते हैं, इसका मतलब है कि आप चंद्राशिला का रास्ता जानते हैं और इसीलिए आपने अकेले आने का फैसला किया है। मेरा सवाल अलग है, अगर आप चंद्राशिला का रास्ता जानते हैं, तो आप रास्ता कैसे खो चुके?
इस पर समीर ने कहा कि वह कई दिनों के बाद इस ट्रेक पर आया था और इस वजह से वह रास्ता भटक गया और फिर समीर गंभीर हुवा और कहा की वो सिर्फ इस ट्रेक का ही नहीं बल्कि अपनी जिन्दगीका रास्ता भटक चूका है । जब साधु ने उससे इसका कारण पूछा, तो समीर ने उसे अब तक हुई सारी घटनाओं को अनजाने में बता दिया और कहा कि उसके पास सवालों के जवाब नहीं हैं। समीर ने साधु को अपनी सारी आपबीती बताई। इसलिए उसने थोड़ी राहत महसूस की, लेकिन वह भी हैरान था कि उसने अपना मन किसी अजनबी के सामने खोल दिया था।
साधु ने शांति से उसकी बात सुनी और अंत में कहा, “प्रकृति के पास हमारे सभी सवालों के जवाब हैं।” साधु का जवाब सुनकर समीर बहुत हैरान हुआ। उन्होंने सोचा कि प्रकृति अपनी फर्म की विफलता का जवाब कैसे दे सकती है। उन्होंने साधु को अपनी राय व्यक्त की, “महाराज, मैं आपकी राय का सम्मान करता हूं, लेकिन मैं आपकी राय से सहमत नहीं हो सकता। मेरा काम तकनीक से संबंधित है। मेरी दुनिया और आपके दुनियाके बीच एक बड़ा अंतर है। हमारी दुनिया की चुनौतियाँ और कठिनाइयाँ इस दुनिया की चुनौतियों से बहुत बड़ी और जटिल हैं। इसलिए मुझे नहीं लगता कि प्रकृति के पास मेरे सवालों के जवाब हैं। ” अनजाने में समीर की आवाज में चिढ़ और आवाज उठ रही थी।
साधु ने इस पर तत्काल कोई प्रतिक्रिया देने से परहेज किया लेकिन उनके एक वाक्य के उत्तर में छिपे आत्मविश्वास को उनके शांत और सात्विक चेहरे पर स्पष्ट रूप से महसूस किया गया। कुछ समय ऐसी ही शांति में बीता। समीर को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह शर्मिंदा हुआ और कहा, “मुझे खेद है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि प्रकृति के पास मेरे सवालों के जवाब हैं।” साधु के चेहरे पर मुस्कान वही थी। उन्होंने समीर से कहा, “आप बहुत थक गए हैं और आप कल फिर से चलना चाहते हैं और रात बहुत देर हो चुकी है इसलिए अब आराम करें।” समीर के लिए साधु का जवाब अप्रत्याशित था, और अब तक समीर को भी अहसास हो चुका कि समीर की उन पर सहज प्रतिक्रिया का साधु के स्वर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। और इसी सोच के साथ वह सो गया।
सुबह समीर चिड़ियों की चहचहाहट से जाग गया। सूर्यनारायण के आगमन की आहट देते हुए, सूर्य की बाल किरने आकाश में चमक उठी थी । उनमें से कुछ, पत्तियों पर ठिबके ओसांक पर गिर के , यह धारणा दे रहे थे कि, पेड़, मोती के हार पहने हुए थे। पूरा इलाका कोहरे की चादर में लिपटा हुआ था। इसने स्वाभाविक रूप से एक शांत और रहस्यमय वातावरण बन गया था। धारा में बहते पानी की धीमी लेकिन अबाध ध्वनि ने वातावरण की रमणीयता को और बढ़ा दिया था। साधु के जाप का स्वर इस पहले से ही निर्मलता भरे वातावरण में पवित्रता पैदा कर रहा था। समीर को लगा कि वह धरती पर नहीं बल्कि स्वर्ग में आया है। इतने दिनों के बाद वह इतनी सुंदर और शांत सुबह का अनुभव कर रहा था। जब समीर ने साधु महाराज को देखा, तो वह अपनी स्थान पर बैठे, ध्यान मुद्रा में प्रातः साधना कर रहे थे। अनजाने में उन्हें देखकर समीर के हाथ जुड़ गए। उसने चुपचाप उनका अभिवादन किया और अपनी सोने की स्लीपिंग बँग लपेट कर अपनी प्रातः विधि पूरी जब वह लौटा, तब तक साधु की साधना समाप्त हो गई।
उन्होंने समीर को कहा कि अगर समय हो तो वह उसके साथ जंगल से जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करके आए। समीर जल्द से जल्द सही रास्ते पर चलकर चंद्रशिला पहुंचना चाहता था, लेकिन वह साधु को इनकार नहीं कर सकता था, क्योंकि उन्होंने कल संकट के समय उसकी मदद की थी और उसे आश्रय दिया था। समीरने थोड़ी नाराजी से सिर हिलाया और जंगल में उनके पीछे निकल पडा।
चूंकि साधु जंगल में सभी चरणों को जानता था, वह जंगल में झाड़ियों के माध्यम से बहुत तेजी से चल रहा था। समीर उनके साथ तालमेल बिठाते हुए थक गया था। थोड़ी दूर जाने के बाद साधु का ध्यान एक पेड़ पर गया और वह रुक गया। समीर को समझ नहीं आया कि साधु अचानक क्यों रुक गया, उसने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। उसने समीर को अपने सामने पेड़ को देखने के लिए कहां। उस पेड़ की शीर्ष शाखा पर एक बाज का घोंसला था।
उस घोंसले में एक गरुड़ शावक था और वह उड़ने की कोशिश कर रहा था। वह पिल्ला उड़ने के लिए लगातार अपने पंख फड़फड़ा रहा था। अंत में वह थोड़ी देर के लिए चुपचाप बैठ गया, फिर उसने अपनी सारी शक्ति इकट्ठी की और फिरसे एक बड़ी छलांग ली और वे आकाश में उड़ने लगा। साधु और समीर नजारा देख रहे थे। वे उस पिल्ला को उड़ते हुए देखकर बहुत खुश हुए। फिर उसने साधु के जरूरत कि लकड़ी इकट्ठा की, और झोंपड़ी में लौट आया।
जब वह लौटा, तो साधु ने समीर से पूछा, “तुम्हारे प्रश्न का जवाब मिल गया?” समीर ने सवालिया भाव से साधु की ओर देखा, के क्या कहना चाहते है, समीर समझ नहीं पाया, उसने साधु से पूछा, आप किस बारे में बात कर रहे हो, “ मुझे कोई भी सवाल का जवाब नहीं मिला। ” इस पर साधु आपना आसन ग्रहण किया और ध्यान की मुद्रा में आकर उससे कहा,“कल तुमने मुझसे अपने जीवन के बारे में एक प्रश्न पूछा था क्या आज आपको जवाब मिला? ” समीर ने कहा “नहीं, मुझे किसी ने जवाब नहीं दिया। आपने कल जवाब देने से भी परहेज किया। तथा मुझे नहीं लगता कि प्रकृति जवाब देगी।”
इस पर साधु ने कहा, “आपने ठीक से निरीक्षण नहीं किया, इसलिए आप समझ नहीं पाए| आपको,उस गरुड़ शावक और आपके बीच कोई समानता लगती नहीं है क्या? इस पर, समीर ने इनकार में अपना सिर हिला दिया। साधु ने आगे कहां “वह पिल्ला और आप दोनों एक ही गलती कर रहे थे।” समीर ने आश्चर्यचकित, होकर पूछा, “कौनसी गलती?” साधु ने शांतिपूर्वक कहा, “जल्दबाजी|”
समीर ने साधु को विस्तार से बताने का अनुरोध किया। इस पर साधु ने उसे बताना शुरू किया, “कल जब तुम ने तुम्हारी कहानी बयां की, तब हि मुझे, तुम्हारी गलती का अहसास हुआ था। आप सफल होने की जल्दी में हैं। वह भी गरुड़ के पिल्ला की तरह, वह उड़ने की जल्दी में था। उसके पंखों में उडने कि ताकत थी पर वह एक जगह पर केंद्रिक्रुत न करते हुए, वह उसे अपने पंख फडफडाने में बर्बाद कर रहा था| इसी वजह से संभव होते हुए भी वह उड़ नहीं सकता था। आपके साथ भी ऐसा ही होता है | आपने अपनी खुद की फर्म शुरू की और आपने अपनी फर्म को मिली हुई हर परियोजना को पुरी करने की कोशिश की । अपनी क्षमता के उपरांत मेहनत करने कि वजह से आप तनाव पूर्ण अवस्था में थे| इसलिए आप काम को न्याय नहीं दे सकते थे। तथा इसका नतीजा, परियोजना से मिला हुआ काम भी आप के हाथ से निकल गया| इसने तुम्हारे दिमाग पर बहुत तनाव डाला और इसीलिए तुम बीमार हो गये। ” सुन कर समीर दंग रह गया। उसने इस ढंग से कभी नहीं सोचा था| वह हमेशा ही, अपनी असफलता का कारण प्राप्त परिस्थिति को ही मानकर चलता था|उसने साधु से इस का उपाय पूछा।
साधु महाराज ने कहा, “वही जवाब प्रकृति ने आपको दिया है। उस समय, सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद, पिल्ला उड नहीं पाया तब वह उड़ने से पहले कुछ देर चुपचाप बैठा रहा, उसी क्षण से उसकी बाल्यावस्था से जुडि हुई वैचारिक अवस्था जागरूक हुई| पंखों में उत्पन्न शक्ति का उपयोग आकाश में छलांग लगाने के लिए किया जा सकता है, यह बात उसे समझमे आने लगी थी| उस पिल्ला ने अपने घोंसले से, आकाश में कई पक्षियों को स्वतंत्र रूप से उड़ते देखा था। इसी वजह से, आकाश में उड़ने की उसकी तीव्र इच्छा और महत्वाकांक्षा थी। और उसी महत्वाकांक्षा के साथ, उसने अपने पंखों की सारी ताकत का इस्तेमाल किया और उसने छलांग लगा ली। आपको भी ऐसा ही करना चाहिए। शांत रहें, सावधान रहें, अति महत्वाकांक्षी न बनें। अपनी क्षमता को पहचानें, रणनीतिक कदम उठाएं और सही अवसर की प्रतीक्षा करें, और अपनी पूरी ताकत का उपयोग करें। आप निश्चित रूप से सफल होंगे। ”
समीर को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। जिस समस्या का हल ढूंढना उसे मुश्किल लग रहा था, उस सवाल का जवाब बहुत आसान था। समीर की नजर में खुशी के आंसू आ गए और उसने साधु के पैर पकड़ लिए। आज, एक वास्तविक रुप में, समीर अपनी गलतियों और उन्हें ठीक करने के उपाय से अवगत थे| साधु ने उसे उठाया, अपने गले लगाया और उसे सफलता का आशीर्वाद दिया।
उस दिन वहाँ रहकर, समीर ने अगली सुबह साधु को अलविदा कहा और उसे जल्द ही फिर से मिलने का वादा किया। साधु ने उसे सही रास्ता दिखाया। कुछ ही समय में, समीर एक बार फिर चंद्रशिला की राह पर था। समीर ट्रेक का रास्ता भुला था, लेकिन इससे उसे अपने जीवन के गलत रास्ते का एहसास हुआ और अब वह सही रास्ते पर था। समीर अपने जीवन में थोड़े बदलाव के रूप में इस ट्रेक पर आए लेकिन इस ट्रेक ने उनके जीवन को बदल दिया। एक नई आशा और विचार के साथ समीर घर लौट आया।