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प्रकृति का जवाब भाग – १

जब समीर उठा तो वह अस्पताल के बिस्तर पर सोया हुआ था। पास ही उनकी पत्नी और उनकी 12 साल की बेटी खडी थी, उनकी आँखों में डर और चिंता दोनों थी। जब समीर ने अपनी पत्नी से पूछा कि क्या हुआ था, तो  पत्नीने उसे सब कुछ बताया, डॉक्टर कुछ देर पहले आए और जाँच की। तनाव के कारण बीपी में अचानक वृद्धि के वजहसे समीर को चक्कर आ रहा था लेकिन अब उसकी प्रकृति । डॉक्टर ने उन्हें पूरी तरह से आराम करने की सलाह दी है। अस्पताल के बिस्तर पर सोयें हुवे ही समीर के सामने सारी घटनाएँ आ गईं। समीर बहुत ही नवोदित और बुद्धिमान सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। उन्होंने एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से मेहनती और लगन से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग पूरी की थी।

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प्रकृति का उत्तर भाग – १

समीर का स्वभाव बहुत तेज और थोड़ा  गुस्सेवाला था। लेकिन अनजाने में उनकी महत्वाकांक्षा ने उनके स्वभाव में कुछ जल्दबाजी पकड़ ली थी। इसलिए कुछ दिनों के लिए एक बड़ी कंपनी के साथ काम करने के बाद, उन्होंने एक साल पहले अपना खुद का सॉफ्टवेयर डिजाइनिंग फर्म शुरू किया। लेकिन उन्हें उम्मीद से कम सफलता मिल रही थी।

इसके समाधान के रूप में, समीर बड़ी और अधिकाधिक परियोजनाओं को स्वीकार करने के पिछे पड गए। अपनी क्षमतासे अधिकाधिक परियोजनाओं को स्वीकार करने के पिछे पडनेके कारन उस पर काम का बहुत तनाव महसूस होने लगा। समय और गति को संयोजित करने में असमर्थ, वो अपनी मानसिक स्थिरता खो बैठा। इसलिए उनका स्वभाव कुछ हटकर हुआ था। हालांकि, आज हुए सदमे से समीर उबर नहीं पाए। क्योंकि, उनकी कंपनी को एक महीने पहले मिला एक बड़ा प्रोजेक्ट कुछ तकनीकी कारणों से रद्द कर दिया गया था। इसलिए, ऑफिस में काम करने के दौरान यह बात पता लगते हि समीर अपनी जगह पर ही बेहोश हो गया। उन्हें उनके सहयोगियों ने उठाया और अस्पताल में भर्ती कराया|

धीरे-धीरे समीर की सेहत में सुधार होने लगा और वह बेहतर महसूस करने लगा। डॉक्टर ने उन्हें अगले कुछ दिनों के लिए सख्ती से आराम करने की सलाह दी, और उन्हें चार दिन बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। समीर के रिश्तेदार और दोस्त उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ करने के लिए उससे मिलने आने लगे। एक दिन, उनके बचपन का दोस्त, वैभव उनसे मिलने आया। बोलने के क्रम में, वैभव ने समीर को कॉलेज में अपने ट्रेकिंग के दिनों की याद दिलाई। समीर को ट्रेकिंग बहुत पसंद थी। अपने कॉलेज के दिनों में, वह और वैभव अलग-अलग ट्रैक पर जाते थे। निकलने से पहले, वैभव ने उन्हें अपनी वर्तमान जीवन शैली से विराम लेने की सलाह दी और उनके सामने एक ट्रेक का विकल्प रखा ।

अब तक समीर को भी अपनी पिछली गलतियों का एहसास होने लगा था। अगले कुछ दिनों के भीतर, समीर पूरी तरह से ठीक हो गया और डॉक्टरों ने उसे ट्रेक पर जाने की अनुमति दी। समीर की पत्नी भी समीर के फैसले से खुश थी, क्योंकि उसे भी लगता था कि समीरने अपने तनाव भरे व्यस्त कार्यक्रम को अभी अपने ऊपर नहीं आने देना चाहिए| 

समीर ने वैभव से उसके साथ ट्रेक पर चलने का अनुरोध किया, ताकि वह एक बार फिर से ट्रेक की अपनी पुरानी यादों को ताजा कर सके। वैभव ने भी समीर के अनुरोध को तुरंत स्वीकार कर लिया। दोनों ने मिलकर उत्तराखंड के चंद्रशिला में अपना पसंदीदा ट्रेक चुना। चूंकि यह ट्रेक से वे बहुत परिचित थे, इसलिए उन्होंने ट्रेक पर स्वतंत्र रूप से जाने का फैसला किया। इसलिए उन्होंने तैयारी शुरू कर दी।

लगभग सप्ताह भर में उनकी सभी तैयारियाँ पूरी हो गईं। उन्होंने ट्रेन टिकट और ट्रेकिंग उपकरण की व्यवस्था की। लेकिन प्रस्थान के दो दिन पहले, वैभव को समीर का फोन आया, और उसने समीर से कहा कि वह कुछ अचानक व्यक्तिगत कठिनाइयों के कारण ट्रेकपर नहीं आ सकता। तो समीर के पास अब दो विकल्प थे, पहला था, तय यात्रा को रद्द करना या दूसरा, अकेले यात्रा पर जाना। समीर ने दूसरा विकल्प चुना। शुरू में समीर की पत्नी ने उसका विरोध किया। लेकिन फिर जब समीर ने उसे समझाया, तो वह मान गई। 

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प्रकृति का उत्तर भाग – १

समीर मुंबई से ट्रेन से दिल्ली और दिल्ली से ऋषिकेश पहुंचा । समीर को ऋषिकेशमें हुए मध्य काल में परिवर्तन देखने में कुछ समय लगा क्योंकि वह कई दिनों बाद ऋषिकेश आया था। उस रात उनका निवास ऋषिकेश में था। उन्होंने दिनभर मे, अगले दो से तीन दिनों तक लगनेवाला पुरा सामान ले लिया। पूरी तैयारी के साथ, वह अगली सुबह चंद्रशिला के लिए रवाना हुए। प्रकृति उसे बुला रही थी I

समीर ने कई बार चंद्रशिला की ट्रेकिंग की थी। तो उसकी समझ में ट्रेक के सभी पायदान से वह परिचित था। समीर अपनी यादों में बसी निशानीयों के तलाश में आगे बढ रहा था। प्रकृति ने हर जगह बहुत सुंदरता बिखराई थी। पर्वत श्रृंखलाएं हरे रंग की कंबल पहनती दिख रही थीं जबकि, पर्वत चोटियो पर बर्फ के मुकुट सजाएं दिख रहे थे। समीर को लगा, जैसे सड़क के दोनों ओर कुछ पेड़ और फूल समीर का अभिवादन करने के लिए खड़े हैं। वैसे समीर और उनका परिचय पुराना था। मानो, सड़क के दोनों ओर के पेड़ उसे पुछ रहे थे, ”क्या आप हमें इतने दिनों तक भूल गए थे?”  समीर मर्म बंध के यादों को याद दिलाते हुए आगे बढ रहा था। वह साथ के कैमरे से प्रकृति के अलौकिक स्वरूप की तस्वीरे खिंच रहा था l

समीर की पुरानी यादें ताजा हो रही थीं, और साथ ही गौरव की याद भी आ रही थी। आज, कई सालों  के बाद समीर इतने खुश और संतुष्ट दिख रहे थे। इस यात्रा को ले कर वह बहुत खुश था। आज कईं सालों बाद समीर को बिना किसी तनाव का दिन का अनुभव हो रहा था।

समीर उसके सामने, प्रकृति के नजारे मे और उसकी पुरानी यादों में इतना तल्लीन था कि उसे बिल्कुल नहीं पता था कि हम कहाँ जा रहे हैं। तब तक संध्या समय करीब आ गया था जब समीर को एहसास हुआ कि वो अपना रास्ता खो चुके हैं।

जब समीर को इस बात का अहसास हुआ तो वह पहले तो बहुत डर गया। वह कुछ समय के लिए अचंभे में था क्योंकि उसे जंगल में कोई मदद मिलने कि संभावना नही थी। अगर कोई संकट आनेपर उसकी मदद करने वाला वहाँ कोई नहीं होता। और पूरी दुनिया में कोई नहीं जानता था कि समीर अभी कहाँ था,  वह खुद भी नहीं !!। 

लेकिन जल्द ही उसके अंदर के ट्रेकर को उसने जगाया और उसने अपने डर पर काबू पा लिया। समीर को इस बात का स्पष्ट अंदाजा था कि ऐसे समय में कैसे व्यवहार करना है क्योंकि कॉलेज में ट्रेकिंग के दौरान अक्सर उनका रास्ता छूट जाता था। 

जैसा कि समीर सोच रहा था कि आगे क्या करना है, उसने पानी की आवाज़ सुनी। यह जानते हुए कि यह जहां पानी होता है, वहां किसीके रहने की संभावना अधिक होती है| समीर धीरे-धीरे उस ध्वनि के  माध्यम के साथ आगे बढ़ा। यह एक छोटी सी धारा  बह रही थी। जब वह धारा के पास पहुँचा, तो समीर ने चारों ओर देखा। वह शाम के धुंधलके में दूर तक नहीं देख सकता था। लेकिन धारा से कुछ ही दूरी पर उन्होंने पेड़ों के पीछे से धुआं निकलता देखा। धुआं देखकर समीर खुश हो गया। बेशक वहाँ मानव बस्तियाँ थीं। समीर जल्दी से कदम उठाने लगा। शाम को ठंड हो रही थी और समीर को अंधेरे से पहले बस्ती तक किसी भी किंमत पर पहुँचना था।

     जब संदीप धुएं के करीब गया, तो उसने वहां एक छोटी सी कुटिया देखी और उस कुटिया से धुआं निकल रहा था। समीर कुटिया के पास गया, कुटिया में झाँका और देखा कि एक जटाधारी साधु अंदर बैठा है। उनकी दाढ़ी सफेद थी। साधु के चेहरे पर, अथक ध्यान द्वारा निर्मित चमक दिख रही थी। भगवा वस्त्र पहने, साधु अपनी जगह पर शांति से ध्यान कर रहा था।…….

प्रकृति का जवाब भाग – २

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